दिन के एक बजे से 4:00 तक शुभ मुहूर्त में माताएं करेंगी पूजन
वारियान व व्यतिपात योग का रहेगा साया
पंचदेवरी, संवाददाता । माताएं संतान की दीर्घायु व उनके उत्तम स्वास्थ्य के लिए जिउतिया का व्रत करती हैं। इसे कई स्थानों में जियूतिया या जिवित्पुत्रिका भी कहा जाता है। इस बार जिले में 25 सितंबर को जिउतिया व्रत मनाया जाएगा । ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से संतान को सुख मिलता है।
आचार्य पंडित आशुतोष मिश्र व पंकज दुबे ने बताया कि यह व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार जितिया व्रत में 25 सितंबर को आद्रा नक्षत्र रात के 3:30 तक पड़ रहा है, इसलिए इस दिन व्रत करना बहुत ही शुभ रहेगा। बुधवार की शाम में जिउतिया शुभ मुर्हूत (लाभ) दोपहर एक बजे से संध्या 04 बजे तक है। इस व्रत में भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रहती हैं और अगले दिन व्रत का पारण करती हैं। इस साल व्रत का पारण 26 सितंबर को सुबह 04 बजकर 35 मिनट से लेकर सुबह के 05 बजकर 23 मिनट तक कर सकते हैं। जितिया व्रत हर साल रखा जाता है। इसे बीच में छोड़ नहीं सकते हैं।
कब लगेगी अष्टमी तिथि
इस वर्ष यह तिथि 25 सितंबर को है। इस वर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी 24 सितंबर को दोपहर 12.39 बजे शुरू होगी, जो 25 सिंतबर को दोपहर 12.11 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार 25 को जितिया का व्रत रखा जाएगा।
इन शुभ मुहूर्त में पूजा रहेगी खास
जितिया व्रत की पूजा शुभ योग में करने से लाभ होता है। यहां हम आपको ऐसे ही शुभ मुहूर्त बता रहे हैं, जिनमें आप शुभ योग में पूजा कर सकते हैं। चौघड़िया शुभ मुर्हूत (लाभ) 04.04 बजे से संध्या 05.33 बजे तक है। इससे पूर्व दिन के चौघड़िया (चर) में दोपहर 01 से 04 बजे तक है।
ऐसे करे जिउतिया व्रत
जितिया व्रत में छठ की तरह ही नहाय-खाय और खरना किया जाता है व तीसरे दिन इस व्रत का पारण किया जाता है। जितिया व्रत के दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान करती हैं। व्रत के दिन सूर्योदय से पहले फल, मिठाई, चाय, पानी आदि का सेवन किया जा सकता है। इसके बाद अगले दिन सूर्योदय तक निर्जला व्रत किया जाता है। इसके बाद अगले दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। इस दौरान चावल, मरुवा की रोटी, तोरई, रागी और नोनी का साग खाने का प्रचलन है।
इनकी होती है पूजा
जितिया व्रत पर भगवान जीमूतवाहन की पूजा का विधान है, जो असल में एक गंधर्व राजकुमार थे। एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा जीमूतवाहन ने अपने साहस और सूझबूझ से एक मां के बेटे को जीवनदान दिलाया था। तभी से उन्हें भगवान के रूप में पूजा जाने लगा और माताएं अपनी संतान की रक्षा के लिए जीवित पुत्रिका नामक व्रत रखने लगीं।
